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गीत अतीत 27 || हर गीत की एक कहानी होती है || चढ़ता सूरज धीरे धीरे || मुज्तबा अज़ीज नाज़ा || अनु मालिक || मधुर भंडारकर || कैसर रत्नगिरि

Geet Ateet 27 Har Geet Kii Ek Kahaani Hoti Hai... Chadhta Sooraj Dheere Dheere Indu Sarkar Mujtaba Aziz Naza Also featuring Aziz Naza, Anu Malik & Kaiser Ratnagiri " आप चाहे तो जिसे भी बेहतर समझे चुन लें पर इसे परदे पर मुझसे बेहतर कोई निभा नहीं सकता  " -    मुज्तबा अजीज़ नाज़ा   चढ़ता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जायेगा...दोस्तों शायद ही कोई संगीत प्रेमी होगा जिसने ये कल्ट क्लास्सिक क़वाल्ली इसके मूल गायक अजीज़ नाज़ा की आवाज़ में न सुनी होगी, अभी हाल ही में कैसर रत्नगिरि रचित इस यादगार क़वाल्ली दुबारा रीक्रेअट किया गया, अजीज़ नाज़ा के बेटे मुज्तबा अजीज़ नाज़ा द्वारा. फिल्म के संगीतकार अनु मालिक ने इस काम में उनका साथ दिया. सुनिए मुज्तबा भाई से आज इसी कवाल्ली के दुबारा बनने की कहानी, प्ले पर क्लीक करें और सुनें अपने दोस्त अपने साथी सजीव सारथी के साथ.... डाउनलोड कर के सुनें  यहाँ  से.... सुनिए इन गीतों की कहानियां भी - ओ रे रंगरेज़ा (जॉली एल एल बी) मैनरलैस मजनूं (रंनिंग शादी डॉट कॉम) रंग (अरविन्द तिवारी, गैर फ़िल्मी सिंगल) हमसफ़र (बदरी

गीत अतीत 19 || हर गीत की एक कहानी होती है || ओ रे कहारों || बेगम जान || कल्पना पटोवरी

Geet Ateet 19 Har Geet Kii Ek Kahaani Hoti Hai... O Re Kaharo Begum Jaan (Kausar Munir, Anu Malik ) Kalpana Patowary- Singer " यूँ  तो मैंने ३० भाषाओं के गीत गाये हैं, और लगभग हर जोनर में गाया है, फिर भी जो आसाम की कल्पना है,जो भोजपुरी गायिका कल्पना है उसे तलाश रहती है कि बॉलीवुड में कुछ ऐसे गीत मिले गाने को जिसमें हमारी अपनी संस्कृति की महक हो... ." -    कल्पना पटोवरी  जानिए कि कैसे एम् टीवी पर गाये एक खड़ी बिरहा गीत की बदौलत गायिका कल्पना को मिला बेगम जान का ये क्लास्सिक गीत, कौसर मुनीर ने है इसे लिखा और स्वरबद्ध किया है अनु मालिक ने, सुनिए कल्पना पटोवरी से "ओ रे कहारों" गीत की कहानी... प्ले पर क्लिक करे और सुनें .... डाउनलोड कर के सुनें  यहाँ  से.... सुनिए इन गीतों की कहानियां भी - ओ रे रंगरेज़ा (जॉली एल एल बी) मैनरलैस मजनूं (रंनिंग शादी डॉट कॉम) रंग (अरविन्द तिवारी, गैर फ़िल्मी सिंगल) हमसफ़र (बदरी की दुल्हनिया) सनशाईन (गैर फ़िल्मी सिंगल) हौले हौले (गैर फ़िल्मी सिंगल) कागज़ सी है ज़िन्दगी (जीना इसी का

"जाँ की यह बाज़ी आख़िरी बाज़ी खेलेंगे हम..." - क्यों इस गीत की धुन चुराने पर भी अनु मलिक को दोष नहीं दिया जा सकता!

एक गीत सौ कहानियाँ - 71   'जाँ की यह बाज़ी आख़िरी बाज़ी खेलेंगे हम...'   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 71-वीं कड़ी में आज जानिए 1989 की फ़िल्म ’आख़िरी बाज़ी’ के शीर्षक गीत "जाँ की यह बाज़ी आख़िरी बाज़ी खेलेंगे हम...&

"यमला पगला दीवाना" का रंग चढाने में कामयाब हुए "चढा दे रंग" वाले अली परवेज़ मेहदी.. साथ है "टिंकू जिया" भी

Taaza Sur Taal 02/2011 - Yamla Pagla Deewana "अपने तो अपने होते हैं" शायद यही सोच लेकर अपना चिर-परिचित देवल परिवार "अपने" के बाद अपनी तिकड़ी लेकर हम सब के सामने फिर से हाजिर हुआ है और इस बार उनका नारा है "यमला पगला दीवाना"। फिल्म पिछले शुक्रवार को रीलिज हो चुकी है और जनता को खूब पसंद भी आ रही है। यह तो होना हीं था, जबकि तीनों देवल अपना-अपना जान-पहचाना अंदाज़ लेकर परदे पर नज़र आ रहे हों। "गरम-धरम" , "जट सन्नी" और "सोल्ज़र बॉबी"... दर्शकों को इतना कुछ एक हीं पैकेट में मिले तो और किस चीज़ की चाह बची रहेगी... हाँ एक चीज़ तो है और वो है संगीत.. अगर संगीत मन का नहीं हुआ तो मज़े में थोड़ी-सी खलल पड़ सकती है। चूँकि यह एक पंजाबी फिल्म है, इसलिए इससे पंजाबी फ़्लेवर की उम्मीद तो की हीं जा सकती है। अब यह देखना रह जाता है कि फ़िल्म इस "फ़्रंट" पर कितनी सफ़ल हुई है। तो चलिए आज की "संगीत-समीक्षा" की शुरूआत करते हैं। "यमला पगला दीवाना" में गीतकारों-संगीतकारों और गायक-गायिकाओं की एक भीड़-सी जमा है। पहले संगीतकारों

मोहब्बत रंग लाएगी जनाब आहिस्ता आहिस्ता....इसी विश्वास पे तो कायम है न दुनिया के तमाम रिश्ते

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 451/2010/151 फ़ि ल्म संगीत का सुनहरा दौर ४० के दशक के आख़िर से लेकर ५० और ६० के दशकों में पूरे शबाब पर रहने के बाद ७० के दशक के आख़िर से धीरे धीरे ख़त्म होता जाता है। और इस बारे में यही आम धारणा भी है। ८० के दशक में फ़िल्मों की कहानी ही कहिए, फ़िल्म और संगीत के बदलते रूप ही कहिए, या लोगों की रुचि ही कहिए, जो भी है, हक़ीक़त तो यही है कि ८० के दशक में फ़िल्म संगीत एक बहुत ही बुरे वक़्त से गुज़रा। कुछ फ़िल्मों, कुछ गीतों और कुछ गिने चुने गीतकारों और संगीतकारों को छोड़ कर ज़्यादातर गानें ही चलताऊ क़िस्म के बने। लेकिन जैसा कि हमने "कुछ' शब्द का प्रयोग किया, तो कुछ गानें ऐसे भी बनें उस दशक में दोस्तों जो उतने ही सुनहरे हैं जितने कि फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के गीत। दोस्तों, कुछ ऐसे ही सुनहरी ग़ज़लों को चुन कर आज से अगले दस कड़ियों में पिरो कर हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला 'सेहरा में रात फूलों की'। चारों तरफ़ वीरानी हो, और ऐसे में कहीं से फूलों की ख़ुशबू आ कर हमारी सांसों को महका जाए, कुछ ऐसी ही बात थी इन ग़

खुदाया तूने कैसे ये जहां सारा बना डाला.....गुलाम अली की मार्फ़त पूछ रहे हैं आनंद बख्शी

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #३७ दि शा जी की पसंद की दूसरी गज़ल लेकर आज हाज़िर हैं हम। आज के अंक में जो गज़ल हम आप सबको सुनवाने जा रहे हैं वह वास्तव में तो एक फिल्म से ली हुई है लेकिन हमारे आज के फ़नकार ने इस गज़ल को मंच से इतनी बार पेश किया है कि लोग अब इसे गैर-फ़िल्मी गज़ल मानने लगे हैं। इस गज़ल की गुत्थी इतनी उलझी हुई है कि एकबारगी तो हमें भरोसा हीं नहीं हुआ कि इसे माननीय अनु मलिक साहब ने संगीतबद्ध किया होगा। फिर हमने अंतर्जाल की खाक छान दी ताकि हमें वास्तविक संगीतकार की जानकारी मिल जाए। ज्यादातर जगहों पर अनु मलिक का हीं नाम था ,लेकिन कुछ लोग अब भी यह दावा करते हैं कि इसे गुलाम अली(हमारे आज के फ़नकार) ने खुद हीं संगीतबद्ध किया है। वैसे हमारी खोज को तब विराम मिला जब गुलाम अली साहब का एक साक्षात्कार हमारे हाथ लगा। उन्होंने उस साक्षात्कार में स्वीकार किया है कि इस गज़ल में संगीत अनु मलिक का हीं है। स्क्रीन इंडिया के एक इंटरव्यू में उनसे जब यह पूछा गया कि अनु मलिक का कहना है कि महेश भट्ट की फ़िल्म "आवारगी" की एक गज़ल "चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना बैठा" को उन्होंने हीं कम्पोज़

फरहान और कोंकणा के सपनों से भरे नैना

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (10) "सांवरिया" मोंटी से है उम्मीदें संगीत जगत को १६ साल की उम्र में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के की -बोर्ड वादक के रूप में फ़िल्म "मिस्टर इंडिया" से अपने संगीत कैरियर की शुरुआत करने वाले मोंटी शर्मा आजकल एक टी वी चैनल पर नए गायक/गायिकाओं के हुनर की समीक्षा करते हुए दिखाई देते हैं. फ़िल्म "देवदास" में उन्होंने इस्माईल दरबार को सहयोग दिया था. इसी फ़िल्म के दौरान दरबार और निर्देशक संजय लीला बंसाली के रिश्ते बिगड़ गए, तो संजय ने मोंटी से फ़िल्म का थीम म्यूजिक बनवाया और बकायादा क्रडिट भी दिया. संजय की फ़िल्म "ब्लैक" के बाद मोंटी को अपना जलवा दिखने का भरपूर मौका मिला फ़िल्म "सांवरिया" से. इस फ़िल्म के बाद मोंटी ने इंडस्ट्री में अपने कदम जोरदार तरीके से जमा लिए. पिछले साल उनकी फ़िल्म "हीरो" का गीत हमारे टॉप ५० में स्थान बनने में सफल हुआ था. अभी हाल ही में फ़िल्म "चमकू" में अपने काम के लिए उन्हें कलाकार सम्मान के लिए नामांकन मिला है. मोंटी की आने वाली फिल्में हैं दीपक तिजोरी निर्देशित "फॉक्स"