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चित्रकथा - 31: इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 4)

अंक - 31

इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 4)


"अपनी  प्रेम कहानी का तू हीरो है.." 



’रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ में आपका हार्दिक स्वागत है। 



हर रोज़ देश के कोने कोने से न जाने कितने युवक युवतियाँ आँखों में सपने लिए माया नगरी मुंबई के रेल्वे स्टेशन पर उतरते हैं। फ़िल्मी दुनिया की चमक-दमक से प्रभावित होकर स्टार बनने का सपना लिए छोटे बड़े शहरों, कसबों और गाँवों से मुंबई की धरती पर क़दम रखते हैं। और फिर शुरु होता है संघर्ष। मेहनत, बुद्धि, प्रतिभा और क़िस्मत, इन सभी के सही मेल-जोल से इन लाखों युवक युवतियों में से कुछ गिने चुने लोग ही ग्लैमर की इस दुनिया में मुकाम बना पाते हैं। और कुछ फ़िल्मी घरानों से ताल्लुख रखते हैं जिनके लिए फ़िल्मों में क़दम रखना तो कुछ आसान होता है लेकिन आगे वही बढ़ता है जिसमें कुछ बात होती है। हर दशक की तरह वर्तमान दशक में भी ऐसे कई युवक फ़िल्मी दुनिया में क़दम जमाए हैं जिनमें से कुछ बेहद कामयाब हुए तो कुछ कामयाबी की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। कुल मिला कर फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद भी उनका संघर्ष जारी है यहाँ टिके रहने के लिए। ’चित्रकथा’ में आज से हम शुरु कर रहे हैं इस दशक के नवोदित नायकों पर केन्द्रित एक लघु श्रॄंखला जिसमें हम बातें करेंगे वर्तमान दशक में अपना करीअर शुरु करने वाले शताधिक नायकों की। प्रस्तुत है ’इस दशक के नवोदित नायक’ श्रॄंखला की चौथी कड़ी।



आदित्य रॉय कपूर और आदित्य सील
स दशक में फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखने वाले नायकों की लम्बी फ़ेहरिस्त के चौथे भाग में आज हम बातें करेंगे कुछ ऐसे नवयुवकों की जिन्होंने अपने अभिनय और अपनी अलग अंदाज़ के ज़रिए बहुत ही कम समय में लोगों के दिलों पर छा गए हैं। शुरुआत करते हैं आदित्य नाम के दो नायकों से। आदित्य रॉय कपूर मुंबई में ही जन्में और फिर 10 वर्ष के लिए अमरीका चले गए थे। उनके दादा रघुअपत रॉय कपूर एक फ़िल्म निर्माता थे और आदित्य के बड़े भाई सिद्धार्थ रॉय कपूर UTV Motion Pictures के CEO हैं। आदित्य के मझले भाई कुणाल रॉय कपूर भी एक अभिनेता हैं। इस तरह से अभिनय और फ़िल्म का स्वाद आदित्य को घर में ही मिला। मुंबई विश्वविद्यालय के St. Xavier's College से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद आदित्य जो उन दिनों एक VJ की नौकरी कर रहे थे, उसी में वो ख़ुश थे और कभी सोचा भी ना था कि वो एक फ़िल्म हीरो बन जाएंगे। स्कूल के दिनों वो एक क्रिकेटर का बनने का सपना देखा करते थे। लेकिन जब ’लंदन ड्रीम्स’ फ़िल्म के वसीम ख़ान के किरदार की ऑडिशन के लिए उन्हें बुलाया गया और उसमें वो पास हो गए, उनकी जीवन धारा ही बदल गई। हालाँकि विपुल शाह की यह फ़िल्म सलमन ख़ान और अजय देवगन जैसे दिग्गजों के होते हुए भी ख़ास चली नहीं, लेकिन आदित्य का फ़िल्मी सफ़र शुरु हो चुका था। अगले ही साल वो विपुल शाह की ही एक और फ़िल्म ’ऐक्शन रिप्ले’ में नज़र आए अक्षय कुमार और ऐश्वर्या राय के साथ। यह फ़िल्म भी फ़्लॉप रही। फिर 2010 में संजय लीला भंसाली की फ़िल्म ’गुज़ारिश’ में हृतिक रोशन और ऐश्वर्या के साथ काम किया लेकिन दुर्भाग्यवश यह फ़िल्म भी पिट गई। एक नायक के रूप में आदित्य को पहला और बहुत बड़ा ब्रेक मिला 2013 की मोहित सुरी की फ़िल्म ’आशिक़ी 2’ में जिसमें उनके साथ नायिका बनीं श्रद्धा कपूर। इस फ़िल्म को भारी सफलता मिली और उस साल की शीर्ष की कामयाब फ़िल्मों में से रही। फिर इसके बाद आदित्य को पीछे मुड़ कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी। 2013 में ही रणबीर कपूर - दीपिका पडुकोणे अभिनीत फ़िल्म ’ये जवानी है दीवानी’ में आदित्य के अभिनय को बहुत पसन्द किया गया जबकि फ़िल्म को मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ मिली थी। यहाँ तक कि आदित्य कि फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों के तहत ’बेस्ट सपोर्टिंग् ऐक्टर’ का नामांकन भी मिला था। इस फ़िल्म को भी व्यावसायिक तौर पर काफ़ी सफलता मिली। 2014 में आदित्या रॉय कपूर और परिनीति चोपड़ा की हबीब फ़ैसल की गुदगुदाने वाली फ़िल्म आई ’दावत-ए-इश्क़’। इस फ़िल्म को मध्यवर्गीय दर्शकों ने ख़ूब पसन्द किया लेकिन बॉक्स ऑफ़िस पर असफल रही। कटरीना कैफ़ के साथ उनकी फ़िल्म ’फ़ितूर’ भी फ़्लॉप रही, लेकिन उनके अभिनय क्षमता पर किसी ने भी प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया। और यही कारण है कि आदित्य को एक के बाद एक फ़िल्में मिलती चली जा रही हैं। 2016 की फ़िल्म ’डियर ज़िन्दगी’ में उनका अतिथि किरदार रहा, और 2017 के शुरु में एक बार फिर श्रद्धा कपूर के साथ उनकी फ़िल्म ’ओके जानु’ चर्चा में रही। 2016 में आदित्य ने वरुण धवन, सिद्धार्थ मल्होत्रा, आलिया भट्ट और परिनीति चोपड़ा के साथ मिल कर "Dream Team Bollywood" नामक म्युज़िक टूर पर गए और अमरीका के कई शहरों में परफ़ॉर्म किया। आने वाले समय में आदित्य रॉय कपूर से और भी बहुत सी अच्छी फ़िल्मों की उम्मीदें हैं। अब आते हैं दूसरे आदित्य पर। मॉडल और अभिनेता आदित्य सील ने फ़िल्मों में पदार्पण मात्र 14 वर्ष की आयु में ही कर लिया था। 2002 की वह ऐडल्ट फ़िल्म थी ’एक छोटी सी लव स्टोरी’ जिसमें वो मनीषा कोइराला के साथ नज़र आए। इतनी कम आयु में ऐसे बोल्ड किरदार निभाने की वजह से उस समय वो काफ़ी चर्चा में रहे। उनके अभिनय क्षमता की तारीफ़ें भी हुईं और सभी को यह समझ में आ गया था कि आने वाले समय में वो एक मंझे हुए अभिनेता बन कर उभरेंगे। 2006 में 18 वर्ष की आयु में वो फिर एक बार ’वी आर फ़्रेन्ड्स’ फ़िल्म में नज़र आए, लेकिन सही मायने में एक नायक के रूप में वो पहली बार नज़र आए 2014 की फ़िल्म ’पुरानी जीन्स’ में जिसमें उनके सह-कलाकार थे तनुज विरवानी और इज़ाबेल। जिस फ़िल्म ने उन्हें सबसे ज़्यादा कामयाबी दी, वह है 2016 की ’तुम बिन 2’। शेखर के किरदार को आदित्य ने इतना अच्छा निभाया कि समीक्षकों से उन्हें अच्छी प्रतिक्रियाएँ ही मिली जबकि फ़िल्म को निराशावादी प्रतिक्रियाएँ ही मिली। आदित्य एक विश्व ताएक्वोन्दो चैम्पियन हैं और उनकी आने वाली फ़िल्म है ’गल्ली बॉय’ जो 2018 में बन कर तैयार होगी। फ़िल्हाल यही कह सकते हैं कि आदित्य सील के हुनर का अभी तक सही मूल्यांकन नहीं हो पाया है। भविष्य में यही उम्मीद करेंगे कि उन्हें ऐसे किरदार निभाने को मिले जिनसे उनकी प्रतिभा का परिचय दर्शकों को मिल सके।


अली ज़फ़र और फ़वाद ख़ान
अब ज़िक्र दो पाक़िस्तान मूल के नायकों का। गायक और अभिनेता अली ज़फ़र का जन्म लाहौर में हुआ और उनके वालिद-वालिदा प्रोफ़ेसर थे। लाहौर से ही पढ़ाई पूरी करने के बाद अली ज़फ़र ने अपना करीयर बतौर स्केच आर्टिस्ट शुरु किया लाहौर के ’पर्ल कॉन्टिनेन्टल होटल’ में। साथ ही साथ वो टेलीविज़न धारावाहिकों में अभिनय भी करने लगे। ’कॉलेज जीन्स’, ’काँच के पार’ और ’लांदा बाज़ार’ जैसी पाक़िस्तानी धारावाहिकों में वो नज़र आए। 2003 से लेकर 2010 के दर्मियाँ अली ज़फ़र पाक़िस्तान में एक बेहद लोकप्रिय और सफ़ल गायक के रूप में उभरे और उनके ऐल्बम्स दुनिया भर में ख़ूब बिके और पसन्द किए गए। कई जाने माने म्युज़िक अवार्ड्स भी उन्हें मिले और पाक़िस्तान के सर्वाधिक लोकप्रिय गायक के रूप में वो स्थापित हुए। हिमेश रेशम्मिया और प्रीतम पर अली ज़फ़र के गीतों की धुनों को चुराने का आरोप भी लगा है। ख़ैर, 2010 में अली ज़फ़र ने बॉलीवूड में क़दम रखा, फ़िल्म थी अभिषेक शर्मा की ’तेरे बिन लादेन’। यह फ़िल्म ओसामा बिन लादेन पर कुछ हद तक आधारित होने की वजह से इसे पाक़िस्तान में बैन कर दिया गया। अली ज़फ़र ने इसमें एक पाक़िस्तानी रिपोर्टर का किरदार निभाया जो ओसामा का एक फ़ेक विडियो बनाता है अमरीका जाने के लिए। भारत में इस फ़िल्म को ज़बरदस्त कामयाबी मिली और अली ज़फ़र को भी इस फ़िल्म में अभिनय के लिए बहुत से पुरस्कार मिले। ’बेस्ट मेल डेब्यु’ का नामांकन उन्हें IIFA, Screen Awards, Zee Cine Awards और Filmfare Awards की तरफ़ से मिला। वो पहले पाक़िस्तानी अभिनेता हैं जिन्हें 2011 के इन्डियन फ़िल्म फ़ेस्टिवल में निमंत्रण मिला अपनी इस फ़िल्म के लिए। ’तेरे बिन लादेन’ की कामयाबी के चलते उन्हें भारत की कई और फ़िल्मों में अभिनय के मौक़े मिलते चले गए। ’लव का दि एन्ड’ में उनका अतिथि किरदार था जिसमें वो "फ़न फ़ना" गीत गाते नज़र आए। ’लव में ग़म’ फ़िल्म का शीर्षक गीत भी उन्होंने ही गाया था। तारा डी’सूज़ा की फ़िल्म ’मेरे ब्रदर की दुल्हन’ दो नायकों वाली फ़िल्म थी जिसमें अली ज़फ़र के साथ इमरान ख़ान नज़र आए। 2011 में प्रदर्शित यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर बहुत ज़्यादा हिट न रही हो लेकिन इसके गीतों की वजह से काफ़ी चर्चा में रही। इमरान और अली ज़फ़र का ट्युनिंग् भी कमाल का था इस फ़िल्म में। इस फ़िल्म में अभिनय के लिए अली ज़फ़र को ’बेस्ट न्यु टैलेन्ट - मेल’ का ’दादा साहब फाल्के’ अवार्ड मिला। स्टारडस्त अवार्ड्स के तहत ’सुपरस्टार फ़ॉर टुमोरो - मेल’ का ख़िताब भी उन्हें ही दिया गया। 2012 की फ़िल्म ’लंदन पैरिस न्युयॉर्क’ में उन्होंने न केवल अभिनय किया बल्कि फ़िल्म का संगीत भी उन्होंने ही तैयार किया। 2013 में ’चश्मे बद्दूर’, 2014 में ’टोटल सियापा’ और ’किल दिल’ तथा 2016 में ’तेरे बिन लादेन: डेड ऑर अलाइव’ और ’डियर ज़िन्दगी’ में अली ज़फ़र नज़र आए। आज अली ज़फ़र एक बहुत ही व्यस्त अभिनेता व गायक हैं। बॉलीवूड के अलावा वो पाक़िस्तान के फ़िल्मों और टेलीविज़न से भी जुड़े हैं तथा दुनिया भर में उनके गीतों के शोज़ होते रहते हैं। अली ज़फ़र की ही तरह एक और पाक़िस्तान मूल के गायक-अभिनेता हैं फ़वाद ख़ान। फ़वाद का जन्म कराची में हुआ और शुरुआती उम्र में ऐथेन्स, दुबई, रियाध, मैनचेस्टर होते हुए 13 वर्ष की आयु में लाहौर आकर सेटल हुए। 20 वर्ष की आयु तक पहुँचते-पहुँचते फ़वाद ने गीटार, बेस और ड्रम्स में महारथ हासिल कर ली थी और ’एन्टाइटी पैराडिम’ नामक बैन्ड के लीड विकलिस्ट भी बने। लाहौर से कम्प्युटर साइन्स में इंजिनीयरिंग् की डिग्री प्राप्त की लेकिन उनका मन संगीत की तरफ़ की रहता था। 1994 से 2012 तक बैन्ड में गाने-बजाने का सिलसिला चलता रहा और उन्हें इसमें सफलता भी मिली। लेकिन अभिनय के क्षेत्र में अपनी क़िस्मत को आज़माने के लिए फ़वाद जुड़े पाक़िस्तानी टेलीविज़न से और 2007 की पाक़िस्तानी फ़िल्म ’ख़ुदा के लिए’ में अभिनय भी किया। इसके बाद पाक़िस्तानी फ़िल्मों और धारावाहिकों में वो छाए रहे। कहा जाता है कि उनकी पहली पाकिस्तानी फ़िल्म ’ख़ुदा के लिए’ के बाद 2008 में उन्हें बॉलीवूड से न्योता मिला था, लेकिन उन दिनों भारत-पाक़िस्तान के बीच तनाव के मद्देनज़र यह संभव नहीं हो सका। फ़वाद ख़ान का बॉलीवूड में पाँव पड़े 2014 में जब शशांक घोष की कॉमेडी-ड्रामा फ़िल्म ’ख़ूबसूरत’ में उन्हें सोनम कपूर का नायक बनने का अवसर मिला। बॉक्स ऑफ़िस की परिभाषा में यह फ़िल्म हिट रही और फ़वाद के अभिनय की भी ख़ूब चर्चा हुई। 2016 की फ़िल्म ’कपूर ऐण्ड सन्स’ में फ़वाद ने एक समलैंगिक बेटे और बड़े भाई का किरदार अदा किया। ॠषी कपूर, रजत कपूर, रत्ना पाठक शाह, सिद्धार्थ मल्होत्रा और आलिया भट्ट जैसे कलाकारों के बीच भी फ़वाद अपनी अलग छाप बनाने में कामयाब रहे। 2016 में ही करण जोहर की फ़िल्म ’ऐ दिल है मुश्किल’ में फ़वाद का छोटा सा रोल था लेकिन उन्हीं दिनों उरि में आतंकवादी हमले के चलते सभी पाक़िस्तानी कलाकारों का बहिष्कार कर दिया गया। 


अमित साध और अरुणोदय सिंह
1983 में जन्में अमित साध टेलीविज़न का एक जानामाना नाम रहे हैं। फ़िल्मों में भले अमित साध ने इस दशक में क़दम रखे हों, टेलीविज़न में वो 2002 में ही आ गए थे। बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी अभिनय जगत में दाख़िल होने के लिए। ’क्यों होता है प्यार’ धारावाहिक से उनका अभिनय सफ़र शुरु हुआ था। इसमें आदित्य भारगव की भूमिका में वो काफ़ी लोकप्रिय हुए। नीना गुप्ता प्रोडक्शन्स की इस धारावाहिक ने उन्हें बहुत कम समय में घर घर तक पहुँचा दिया था। फिर इसके बाद 2004 में ’गन्स ऐन्ड रोज़ेस’ नामक शो में वो दिखे। इसी धारावाहिक की शूटिंग् के दौरान उनकी मुलाक़ात नीरु बजवा से हुई और आगे चल कर दोनों ने शादी कर ली। 2005 में ’कोहिनूर’ धारावाहिक में करण सक्सेना के किरदार में भी वो बख़ूबी ढल गए। रियल्टी शोज़ का दौर शुरु हो चुका था। अमित साध ने भी इस क्षेत्र में अपनी क़िस्मत आज़मानी चाही। 2005 के ’नच बलिये’ में उन्होंने भाग लिया। लोकप्रिय शो होने की वजह से वो चर्चा में रहे और अगले ही साल ’बिग बॉस 1’ में भाग लेने के लिए उन्हे निमंत्रण मिला। इन दोनों प्रतियोगिताओं में अमित विजेता तो नहीं बन पाए लेकिन वो छोटे परदे पर छाए ज़रूर रहे। 2007 में ’Fear Factor: ख़तरों के खिलाड़ी’ में भी उन्होंने भाग लिया था। नया दशक उनकी ज़िन्दगी में कई बदलाव लेकर आया। जहाँ एक तरफ़ पत्नी नीरु बजवा से उनका रिश्ता टूट गया, दूसरी तरफ़ उन्हें छोटे परदे से बड़े परदे पर उतरने का मौका मिल गया। फ़िल्म थी 2010 की हॉरर फ़िल्म ’फूंक 2’। रॉनी के किरदार में उन्होंने हॉरर फ़िल्म के लिए जिस तरह का अभिनय चाहिए, वैसा ही अभिनय किया। 2012 में ’मैक्सिमम’ फ़िल्म वो नज़र आए लेकिन यह फ़िल्म नहीं चली। 2013 की मशहूर फ़िल्म ’काइ पो चे’ में ओमी शास्त्री की भूमिका में अमित साध ने अच्छा अभिनय किया जो अब तक लोगों को याद है। 2015 में ’गुड्डु रंगीला’ में अमित गुड्डू के रोल में और अरशद वारसी रंगीला के रोल में नज़र आए और दर्शकों को ख़ूब गुदगुदाया। 2016 की सलमन ख़ान की फ़िल्म ’सुल्तान’ में अमित साध एक बिज़नेसमैन अक्षय ओबेरोय के रोल में नज़र आए थे। ’अकीरा’ और ’रनिंग् शादी’ जैसी फ़िल्मों के बाद अमित एक बार फिर 2017 की एक महत्वपूर्ण फ़िल्म ’सरकार 3' में नज़र आए शिवाजी नागरे की भूमिका में। 2018 में ’गोल्ड’ में वो अक्षय कुमार और कुणाल कपूर के साथ नज़र आएंगे। अमित साध की तरह 1983 में एक और अभिनेता का जन्म हुआ था। मध्य प्रदेश में जन्मे अरुणोदय सिंह मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पोते हैं। कोडाइकनाल के बोर्डिंग् स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद अरुणोदय ने अपनी उच्च शिक्षा Brandeis University से हासिल की। स्कूल के दिनों में वो नाटकों में भाग लिया करते थे और वहीं से उनमें अभिनय की रुचि उत्पन्न हुई थी। एक साक्षात्कार में अरुणोदय ने बताया था कि एक अभिनेता बनने की ख़्वाहिश उनमें अभिनेता मारलन ब्रैन्डो की 1954 की फ़िल्म ’On the Waterfront’ को देखने के बाद जागी। स्नातक की पढ़ाई पूरी कर अरुणोदय New York Film Academy में अभिनय के कुछ कोर्सेस किए और न्यु यॉर्क के ही Acting Studio में भर्ती हो गए। और उस दौरान वहाँ के कई नाटकों में अभिनय किया। इन तमाम कोर्सेस के पूरे होते ही वो भारत लौट आए और जगह जगह ऑडिशन्स देने लगे। और उनकी मेहनत रंग लाई सन् 2009 में जब फ़िल्म ’सिकन्दर’ में उनका चुनाव हो गया। पीयुष झा निर्देशित इस फ़िल्म में अरुणोदय को एक कश्मीरी स्वाधीनता सेनानी का किरदार निभाने का मौका मिला। इस किरदार को उन्होंने बहुत ख़ूब निभाया और उनके अभिनय की चर्चा भी हुई। उनकी दूसरी फ़िल्म थी अनिल कपूर की फ़िल्म ’आइशा’ जिसमें अरुणोदय ने सोनम कपूर के साथ अभिनय किया। यह फ़िल्म जेन ऑस्टेन की उपन्यास ’एमा’ पर आधारित थी। 2010 की इस फ़िल्म के बाद इसी साल अरुणोदय विनय शुक्ला की फ़िल्म ’मिर्च’ में भी नज़र आए जो एक लिंग और लैंगिकता विषय की फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में उन्होंने एक संघर्षरत फ़िल्म निर्देशक की भूमिका निभाई। 2011 की फ़िल्म ’ये साली ज़िन्दगी’ में उन्होंने ऐसा अभिनय किया कि उस वर्ष के स्क्रीन अवार्ड्स में श्रेष्ठ सह-अभिनेता के पुरस्कार के लिए उनका नाम नामांकित हुआ। 2012 में सनी लीयोन और रणदीप हूडा की सेक्स फ़िल्म ’जिस्म 2’ में अरुणोदय सह-नायक की भूमिका में नज़र आए। 2013 का वर्ष उनके लिए अच्छा नहीं रहा और उनकी एकमात्र फ़िल्म ’एक बुरा आदमी’ के बुरे सपने ही की तरह आया और गुज़र गया। 2014 में अरुणोदय की तीन फ़िल्में आईं। हास्य फ़िल्म ’मैं तेरा हीरो’ में अंगद नेगी की भूमिका में उन्होंने मज़ेदार अभिनय किया और डेविड धवन की इस फ़िल्म में वरुण धवन के साथ-साथ उन्होंने भी दशकों को ख़ूब हँसाया। इसी साल सुपरनैचरल थ्रिलर फ़िल्म ’पिज़्ज़ा’ में मिस्टर घोस्ट की भूमिका में उन्होंने क्या ख़ूब अभिनय किया। हर फ़िल्म में अलग तरह का किरदार निभाते चले आए हैं अरुणोदय सिंह। 2014 में ही एक और फ़िल्म ’उंगली’ में वो नज़र आए जिसमें इमरान हाशमी और रणदीप हूडा भे रहे। 2015 में ’मिस्टर एक्स’ अरुणोदय ने ACP भारद्वाज का रोल निभाया। 2016 में भी दो फ़िल्मों में वो नज़र आए - ’बुड्ढा इन ए ट्रैफ़िक जैम’ और ’मोहेन्जो दारो’। ’मोहेन्जो दारो’ जैसी पीरियड फ़िल्म में महम के बेटे मूंजा के किरदार में बड़ा ही प्राकृतिक अभिनय किया अरुणोदय ने। 2017 में अब तक किसी हिन्दी फ़िल्म में अरुणोदय नज़र तो नहीं आए, लेकिन एक अंग्रेज़ी और एक मलयालम फ़िल्म में उन्होंने अभिनय किया है। अंग्रेज़ी फ़िल्म ’Viceroy's House' अरुणोदय सिंह के करीयर की एक महत्वपूर्ण फ़िल्म है जिसकी कहानी देश के बटवारे के बाद 1947 के वायसरॉय हाउस के अन्दर की कहानी है। 1971 के ’बांग्लादेश वार’ की पृष्ठभूमि पर बनी मलयालम फ़िल्म ’1971: Beyond Borders' में भी अभिनय करने का मौका उन्हें मिला है। इस तरह के फ़िल्मों में मौका मिलना इसी बात की ओर संकेत करता है कि अरुणोदय की अभिनय क्षमता वर्सेटाइल है और हर तरह के किरदार में वो खरे उतरते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आने वाले समय में अरुणोदय सिंह के और भी बहुत सी यादगार फ़िल्में आने वाली हैं।


कार्तिक आर्यन और शशांक अरोड़ा
नई दिल्ली में जन्में शशांक अरोड़ा सिर्फ़ एक अभिनेता ही नहीं बल्कि एक लेखक और म्युज़िशियन भी हैं। फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कारों में बेस्ट डेब्यु के लिए नामांकित शशांक उन गिने चुने भारतीय अभिनेताओं में से हैं जिनकी फ़िल्में कान और संडैन्स जैसे फ़िल्म उत्सवों में शिरकत की हैं। बचपन से ही संगीत और थिएटर में आग्रही शशांक हाइ स्कूल की पढ़ाई पूरी कर मोन्ट्रिएल कनाडा चले गए थे सिनेमा और संगीत की पढ़ाई के लिए। 2008 में वो भारत लौटे और मुंबई में फिर से दो वर्ष के लिए अभिनय सीखा। 2012 में वो पहली बार बड़े परदे पर नज़र आए बतौर सह-अभिनेता, फ़िल्म थी ’म्योहो’। फिर 2015 में फ़िल्म ’तितली’ में मुख्य किरदार निभाया और इस फ़िल्म को उस वर्ष के कान फ़िल्म उत्सव में भारत की आधिकारिक स्वीकृति मिली। 2016-17 में शशांक के अभिनय से सजी कई फ़िल्में आईं जैसे कि ’दि सॉंग् ऑफ़ स्कॉरपियोन्स’, ’रॉक ऑन 2’, ’ब्राह्मण नमन’, ’लिप्स्टिक अंडर माइ बुरखा’, ’मन्टो’, ’ज़ू’, ’मूथोन’ और ’अंडरवाटर’। शशांक एक सच्चे कलाकार हैं और इसमें कोई संदेह नहीं कि आने वाले समय में वो अपने चाहने वालों के लिए क्वालिटी सिनेमा लेकर आएँगे। डॉक्टरों के परिवार से ताल्लुख़ रखने वाले कार्तिक आर्यन के लिए अभिनेता बनना आसान नहीं था। वो कभी अपने डॉक्टर माता-पिता से यह नहीं कह सके कि उन्हें एक ऐक्टर बनना है। और ग्वालियर जैसे शहर में रह कर मुंबई में फ़िल्मस्टार बनने का सपना देखना भी ग़लत है, ऐसा कार्तिक ने बताया एक साक्षात्कार में। उपर से अभिनय का कोई अनुभव नहीं था उन्हें। अपने माँ-बाप को यह कह कर कि वो मुंबई उच्चशिक्षा के लिए जा रहे हैं, कार्तिक ग्वालियर से मुंबई आ गए। एन्ट्रैन्स परीक्षा में 23-वाँ स्थान प्राप्त कर DY Patil College में बायोटेक्नोलोजी लेकर पढ़ाई करने लगे। साथ ही साथ ग्लैमर वर्ल्ड की ख़बर रखने लगे। और जब एक बार फ़िल्म ’प्यार का पंचनामा’ के लिए फ़ेसबूक पर ऐड देखा तो उन्होंने ऐप्लाई किया और ऑडिशन के लिए पहुँच गए। इस तरह से कार्तिक आर्यन ने 2011 की हास्य फ़िल्म ’प्यार का पंचनामा’ से अपना फ़िल्मी सफ़र शुरु किया। उनके द्वारा एक शॉट में पाँच मिनट के संवाद को फ़िल्म इतिहास का सबसे लंबा शॉट माना जाता है। यह फ़िल्म हिट हुई और कार्तिक के अभिनय को भी सराहना मिली। 2013 में वो नज़र आए ’आकाशवाणी’ में और 2014 में सुभाष घई की फ़िल्म ’कांची’ में वो नायक बने। फ़िल्म नहीं चली, लेकिन अगले ही साल ’प्यार का पंचनामा 2’ फिर एक बार चल पड़ा और इस फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठा हास्य अभिनेता का स्टारडस्ट पुरस्कार भी मिला। इस फ़िल्म में उन्होंने आठ मिनट का एक शॉट दिया था और अपने ही रेकॉर्ड को उन्होंने तोड़ा। आजकल कार्तिक ’गेस्ट इन लंदन’ फ़िल्म की शूटिंग् कर रहे हैं।


आख़िरी बात

’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!





शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र  



रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

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सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की